कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर देश के किसान पिछले करीब 9 महीने से दिल्ली की सीमा पर डटे हैं। भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता और किसान नेता राकेश टिकैत देशभर में घूम-घूमकर किसानों की महापंचायत कर उन्हें केंद्र सरकार के खिलाफ लामबंद करने में जुटे हैं। इस क्रम में राकेश टिकैत देहरादून पहुंचे थे। किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि केंद्र सरकार ने जबरन कृषि कानूनों को किसानों के ऊपर थोपा है। ऐसे में जब तक केंद्र सरकार तीनों कानूनों को वापस नहीं लेती, तब तक किसान दिल्ली के बॉर्डर पर डटे रहेंगे। उन्होंने मीडिया से उत्तराखंड में किसानों की आवाज बुलंद करने की बात भी कही। उन्होंने कहा कि कलम पर भी अब संगीनों का पहरा है। वहीं, 15 अगस्त की तैयारियों को लेकर राकेश टिकैत ने कहा कि वह लालकिले से 400 किलोमीटर दूर काशीपुर के एक गांव में झंडा फहराकर स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे। लालकिले पर पूछे सवाल पर टिकैत ने कहा कि केंद्र सरकार ने वहां बड़ी-बड़ी चारदीवारी खड़ी कर दी है। ऐसे में कौन वहां पर झंडा फहराने जा सकता है। इसके अलावा राकेश टिकैत ने उत्तराखंड में लगातार हो रहे पलायन और बंजर होते खेतों पर चिंता जाहिर की है। टिकैत ने कहा कि यहां की सरकार किसानों की सुध ले और यहां की उपजाऊ जमीन को किसानों के हित में लाने का फैसला करे। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार किसानों के हित में फैसले नहीं ले रही है।
राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने उत्तराखंड सरकार पर किसानों की उपेक्षा और अनदेखी का आरोप लगाया है। उन्होंने उत्तराखंड के किसानों और लोगों के लिए हिमाचल की तर्ज पर विलेज टूरिस्ट पॉलिसी, ट्रांसपोर्ट पॉलिसी, हिल पॉलिसी और बॉर्डर के सीमांत क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए अलग जोन बनाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि अगर उत्तराखंड सरकार ने किसानों की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया तो आंदोलन झेलने को तैयार रहे।
राकेश टिकैत ने कहा कि देश के अन्य राज्यों की तरह ही उत्तराखंड के किसान भी सरकार की उपेक्षा से परेशान हैं। फसलों का उचित दाम नहीं मिल रहा है। अगर उत्तराखंड सरकार उत्तराखंड में हिमाचल की तरह विलेज टूरिज्म की पॉलिसी लागू करे तो यहां के लोगों का पैैसा यहीं के लोगों को मिलेगा और यहां के लोगों और किसानों को दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में नहीं जाना पड़ेगा।
केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों पर राकेश टिकैत ने कहा कि किसानों से कहा जा रहा है कि कानूनों में काला क्या है। जिन कानूनों के बनते ही उसमें 18 संशोधन की बात कही जा रही हो, वह कानून कैसा है। इसे काला कानून न कहें तो क्या कहें। इन कानूनों से किसानों को बर्बाद करने की साजिश रची जा रही है। भंडारण क्षमता की व्यवस्था खत्म कर दी गई है। एमएसपी की बात कही जा रही है, लेकिन किसान अपने फसलों को कम दामों में बेचने को मजबूर हो रहे हैं। कांट्रेक्ट फार्मिंग से किसानों पर प्रहार किया जा रहा है।