उत्तराखंड: चमोली जिले के जोशीमठ शहर में हो रहे भूधंसाव को लेकर आज एक बड़ी समस्यां बन कर सामने आई है जिसकी राष्ट्रिय स्तर पर चर्चा हो रही है, जोशीमठ हिमालयी क्षेत्र के अंतर्गत उत्तराखंड के ‘गढ़वाल हिमालय’ में 1890 मीटर की ऊंचाई पर है. यह एक छोटा सा शहर है. यहां की अबादी 20,000 से ज्यादा है. शहर एक नाजुक पहाड़ी ढलान पर बना हुआ है जो कथित तौर पर अनियोजित और अंधाधुंध विकास परियोजनाओं के चलते संकट से घिर गया है. यहां हाल के वर्षों में निर्माण और जनसंख्या दोनों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. हाल में यहां जमीन धंसने का सिलसिला शुरू हुआ और अब स्थिति डरा रही है. इन दिनों यह खूबसूरत पहाड़ी शहर वहां हो रहे भूधंसाव और भवनों में निरंतर पड़ रही दरारों को लकर चर्चा में है।
उत्तराखंड सरकार ने गुरुवार को जोशीमठ में और उसके आसपास के इलाकों में जमीन धंसने के कारण निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी. कथित तौर पर निर्माण कार्यों के कारण इलाके के घरों में दरारें आ गईं, जिससे घबराए स्थानीय लोगों ने विरोध किया. स्थानीय लोगों का आरोप है कि एनटीपीसी के हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की वजह से ही यह मुसीबत पैदा हुई है. जोशीमठ में होटल और ऑफिस, सब ढह से रहे हैं. यहां लोगों के पास दो ही विकल्प हैं- या तो अपना घर छोड़ दें या फिर अपनी जान खतरे में डालकर इलाके में रहें.
जोशीमठ शहर में हो रहे भूधंसाव को लेकर यदि तंत्र 47 साल पहले ही चौकन्ना हो जाता तो आज शायद ये नौबत नहीं आती। उत्तर प्रदेश के दौर में वर्ष 1976 में तत्कालीन गढ़वाल मंडलायुक्त महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञों की कमेटी ने जोशीमठ में ऐसे खतरों को लेकर सचेत किया था। साथ ही पुराने भूस्खलन क्षेत्र में बसे इस शहर में पानी की निकासी को पुख्ता इंतजाम करने और अलकनंदा नदी से भूकटाव की रोकथाम के लिए प्रभावी कदम उठाने के सुझाव दिए थे। तब इक्का-दुक्का नालों का निर्माण हुआ, लेकिन बाद में इस तरफ आंखें मूंद ली गईं। इस अनदेखी का नतीजा आज सबके सामने है।
जोशीमठ के स्थानीय लोगों का मानना है कि एनटीपीसी के हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की वजह से ही यह मुसीबत पैदा हुई है. चार धाम प्रोजेक्ट पर पर्यावरण और सुप्रीम कोर्ट से नियुक्त उच्चाधिकार प्राप्त समिति के सदस्य हेमंत ध्यानी ने कहा कि क्षेत्र की जियोलॉजिकल वनरेबिलिटी से पूरी तरह अवगत होने के बावजूद, जोशीमठ और तपोवन के आसपास हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई है, जिसमें विष्णुगढ़ एचई परियोजना भी शामिल है. उन्होंने बताया कि एक दशक पहले, विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी कि अचानक और बड़े पैमाने पर सतह से पानी निकालने से क्षेत्र में जमीन धंसने की शुरुआत हो सकती है, लेकिन फिर भी कोई सुधारात्मक उपाय नहीं किए गए, इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि शहर डूब रहा है. बता दें कि इस योजना के तहत पहाड़ों को काटकर लंबी सुरंग बनाई जा रही है. 2 साल पहले शुरू हुए पावर प्रोजेक्ट के बाद से ही यहां जमीन पर दरारें पड़ने का सिलसिला शुरू हुआ था. सरकारी परियोजनाओं के चलते पूरे शहर में टनल बनाने के लिए ब्लास्ट किए जा रहे हैं, जो खतरे की घंटी है.