उत्तराखंड की राजनीति में हरीश रावत एक ऐसा चेहरा हैं, जिसे पढ़े बिना उत्तराखंड की राजनीति को समझा नहीं जा सकता है। हरीश रावत का कद अब उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस के नेताओं से इतना ऊपर है कि उन्हें न सिर्फ राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी में महासचिव के पद की जिम्मेदारी सौंपी गई है बल्कि पंजाब का प्रदेश प्रभारी भी बनाया गया है, बावजूद इसके जिस तरह के कांग्रेस में इन दिनों हालात बन रहे हैं उसे देखकर यही लगता है कि ‘हरदा’ का उत्तराखंड कांग्रेस के लिए योगदान भूला जा चुका है।
यह बात हम यूं ही नहीं कह रहे बल्कि इन दिनों प्रदेश कांग्रेस के भीतर चल रही सियासी बयानबाजी इस ओर ही इशारा कर रही है। बीते दिनों हरीश रावत ने कहा था कि साल 2022 के चुनाव में अगर कांग्रेस सत्ता पर काबिज होती है तो वह जनता को बिजली-पानी मुफ्त देंगे। हरीश रावत का ये लुभावना मैसेज प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारियों को ही रास नहीं आया और उन्होंने इस वादे से कन्नी काट ली। मामला यहीं नहीं रुका, कर्णप्रयाग में पदाधिकारियों के साथ बैठक कर प्रीतम सिंह ने हरीश रावत का नाम लिए बिना तंज कसते हुए साल 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति बद से बदतर होने का जिम्मा भी उन्हीं को ठहराया दिया। ऐसे में अब प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारी और हरदा के बीच की खाई और गहरी होती जा रही है। दिन पर दिन दोनों के बीच की दूरियां न सिर्फ बढ़ती जा रही हैं बल्कि बयानबाजी के चलते कांग्रेस अपनी बची-खुची जमीन भी खोती जा रही है। वहीं हरीश रावत भी इस बात को बेहतर तरीके से समझते हैं तभी तो वो अपना दर्द बयां करने से भी नहीं हिचक रहे हैं। उन्होंने साल 2024 में राजनीति से संन्यास लेने की बात भी कह दी है लेकिन एक शर्त के साथ। उन्होंने लिखा है कि, ‘मैं संन्यास लूंगा, अवश्य लूंगा मगर 2024 में, देश में राहुल गांधी के नेतृत्व में संवैधानिक लोकतंत्रवादी शक्तियों की विजय और राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही यह संभव हो पायेगा, तब तक मेरे शुभचिंतक मेरे संन्यास के लिये प्रतीक्षारत रहें। यही नहीं, हरीश रावत ने खुद की तुलना महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन को लगे घाव से करते हुए कहा कि उनके राजनीतिक जीवन के शुरुआती दिनों में भी उन पर कई बार घाव लगे हैं और कई बार हार भी झेली है लेकिन उन्होंने न ही अपनी राजनीति से निष्ठा बदली और न ही चुनावी अखाड़े को बदला। हरीश रावत ने सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयां करते हुए लिखा कि, महाभारत के युद्ध में अर्जुन को जब घाव लगते थे, वो बहुत रोमांचित होते थे। राजनैतिक जीवन के प्रारंभ से ही मुझे घाव दर घाव लगे, कई-कई हारें झेली, मगर मैंने राजनीति में न निष्ठा बदली और न रण छोड़ा। मैं आभारी हूं, उन बच्चों का जिनके माध्यम से मेरी चुनावी हारें गिनाई जा रही हैं, इनमें से कुछ योद्धा जो आरएसएस की क्लास में सीखे हुए हुनर, मुझ पर आजमा रहे हैं। वो उस समय जन्म ले रहे थे, जब मैं पहली हार झेलने के बाद फिर युद्ध के लिए कमर कस रहा था, कुछ पुराने चकल्लस बाज हैं जो कभी चुनाव ही नहीं लड़े हैं।
2020-11-24